अलग-अलग प्रकार के लिक्विडिटी अनुपात: वे हमें क्या बताते हैं?
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व्यवसाय के परेशानी-मुक्त संचालन में के लिए लिक्विडिटी एक अहम शर्त होती है। वह इसलिए कि वह सुनिश्चित करती है कि फ़र्म बिना किसी परेशानी के अपनी अल्पकालिक वित्तीय ज़िम्मेदारियों को पूरा कर सकेगी। लिक्विडिटी अनुपात अपने फ़्लोटिंग शुल्कों का फ़टाफ़ट निपटान करने की किसी कंपनी की क्षमता का आकलन करता है।
ये मेट्रिक इस बात की जानकारी प्रदान करते हैं कि अपने कर्ज का निपटान करने के लिए कोई कंपनी अपने एसेट्स को कितनी कुशलता से लिक्विडेट कर सकती है। एक उच्च लिक्विडिटी अनुपात कर्ज को प्रबंधित कर भुगतान में होने वाली देरी से बचने की बेहतर क्षमता का सूचक होता है। एक स्वस्थ लिक्विडिटी पोज़ीशन बनाए रखकर कोई व्यवसाय बाज़ार में अपनी वित्तीय मज़बूती और नाम को बरकरार रख सकता है।
लिक्विडिटी अनुपातों के मतलब और प्रकारों के बारे में जानकारी प्रदान कर यह लेख अंत में ऐसे ही एक अनुपात का हिसाब लगाकर इन अनुपातों के व्यावहारिक उपयोग की स्थितियों को दर्शाएगा।
प्रमुख बिंदु
- किसी कंपनी के ऋण दायित्वों को ध्यान में रखते हुए उसकी आर्थिक क्षमताओं को निर्धारित करने के लिए उस कंपनी के प्रदर्शन के वित्तीय मूल्यांकन के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले मेट्रिक को लिक्विडिटी अनुपात कहते हैं।
- लिक्विडिटी मेट्रिक कई प्रकार के होते हैं, जिनमें एसिड टेस्ट, करेंट और कैश रेशियो भी शामिल हैं।
लिक्विडिटी अनुपात क्या दर्शाते हैं?
लिक्विडिटी अनुपात अल्पकालिक दायित्वों को पूरा करने के लिए एसेट्स को नकद में परिवर्तित करने की किसी कंपनी की क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला एक स्टैटिस्टिकल मेट्रिक होता है। कंपनी की अल्पकालिक वित्तीय निरंतरता और किसी खलल या वित्तीय परेशानियों के बिना फ़ौरन वित्तीय बाधाओं से निपटने की उसकी योग्यता को निर्धारित करने में यह अनुपात एक अहम भूमिका निभाता है।
आर्थिक विश्लेषण में भी एक अहम भूमिका निभाते हुए लिक्विडिटी मेट्रिक अपनी फ़िस्कल जिम्मेदारियों से कारगर ढंग से निपटने में किसी कंपनी की क्षमता के बारे में निवेशकों और लेनदारों को अहम जानकारी मुहैया कराते हैं।
सवाल जब लिक्विडिटी अनुपातों के विश्लेषण का आता है, तो तुलनात्मक रूप से इस्तेमाल किए जाने पर वे सबसे ज़्यादा फ़ायदेमंद साबित होते हैं। यह तुलना आंतरिक या बाहरी हो सकती है।
लिक्विडिटी इंडिकेटरों के आंतरिक विश्लेषण के तहत विभिन्न एकाउंटिंग अवधियों के एक जैसे एकाउंटिंग सिद्धांतों का इस्तेमाल कर तैयार किए गए डेटा की जाँच की जाती है।
पिछली अवधियों की मौजूदा वित्तीय प्रदर्शन से तुलना कर विश्लेषक संगठन में आने वाले बदलावों पर नज़र रख सकते हैं। आमतौर पर एक ऊँचे लिक्विडिटी अनुपात का मतलब यह होता है कि फ़र्म की लिक्विडिटी बेहतर है व अपने बकाया कर्ज को कवर करने के लिए वह एक मज़बूत स्थिति में है।
दूसरी तरफ़, बाहरी विश्लेषण के तहत कंपनी के लिक्विडिटी अनुपातों की उसी सेगमेंट या नीश वाली अन्य कंपनियों के लिक्विडिटी अनुपातों से तुलना की जाती है। इस प्रकार का विश्लेषण कंपनी की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति का मूल्यांकन कर बेंचमार्क लक्ष्य निर्धारित करने में मददगार होता है।
इसके विपरीत, अलग-अलग सेक्टरों की कंपनियों का मूल्यांकन करते समय लिक्विडिटी अनुपातों का विश्लेषण कम कारगर साबित हो सकता है। वह इसलिए कि हर सेक्टर की अपनी अलग फ़ाइनेंसिंग ज़रूरतें हो सकती हैं। उसी प्रकार, कंपनी के बैंक खाते में मौजूद पैसे की तुलना अन्य स्थानों पर चलते व्यवसायों के बैंक खातों से करके शायद ज़्यादा काम की जानकारी न मिले।
लिक्विडिटी अनुपात और वित्तीय जाँच
सभी प्रकार के लिक्विडिटी अनुपात किसी कंपनी के माइक्रो और मैक्रो आर्थिक प्रदर्शन का मूल्यांकन करने की प्रक्रिया के अहम उपकरण होते हैं, और निम्न कारण उन्हें अहम बनाते हैं:
1. दीर्घकालिक सॉल्वेंसी का मूल्यांकन
लिक्विडिटी मेट्रिक अपनी तात्कालिक वित्तीय ज़िम्मेदारियों को पूरा करने की किसी फ़र्म की क्षमता का पारदर्शी नज़रिया प्रदान करते हैं। इन मेट्रिक्स का सहारा लेकर ऋणदाता, विक्रेता, और शेयरहोल्डर इस बात का मूल्यांकन करते हैं कि क्या कंपनी के पास समय रहते अपने कर्ज चुकाने लायक लिक्विड संसाधन हैं या नहीं। एक पुख्ता लिक्विडिटी स्थिति यह सुनिश्चित करती है कि फ़िस्कल उथल-पुथल से बचते हुए कंपनी रोज़मर्रा की अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को प्रबंधित कर पाएगी।
2. वित्तीय स्थिति का मूल्यांकन
लिक्विडिटी मेट्रिक वे अनिवार्य वित्तीय मूल्यांकन उपकरण होते हैं, जिनकी मदद से किसी कंपनी के समग्र वित्तीय प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जाता है। इन अनुपातों का इस्तेमाल अपने कैश फ़्लो को प्रबंधित करने, अपने एसेट्स का सही ढंग से इस्तेमाल करने, और वित्तीय जोखिमों को कम करने की किसी कंपनी की क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है।
लिक्विडिटी की पुख्ता पोज़ीशन बनाए रखने वाले संगठनों को आमतौर पर वित्तीय रूप से स्थिर और वित्तीय अनिश्चितताओं के प्रति कम संवेदनशील माना जाता है। संक्षेप में कहें तो किसी कंपनी की वित्तीय स्थिति के बारे में बेशकीमती जानकारी मुहैया कराकर लिक्विडिटी अनुपात सोचे-समझे फ़ैसले लेने में निवेशकों की मदद कर सकते हैं।
3. ऑपरेशनल प्रदर्शन की समीक्षा
लिक्विडिटी अनुपात किसी कंपनी के काम-काज की दाक्ष्ता का आकलन कर सकते हैं। ओवरफ़्लो करती इन्वेंटरी या फिर क्लियर होने में काफ़ी वक्त लेने वाले बिल घटे हुए लिक्विडिटी अनुपातों की चपेट में आ जाते हैं, जबकि बढ़े हुए अनुपात अपनी क्षमता से कम उपयोग किए जा रहे एसेट्स के सूचक होते हैं। लिक्विडिटी अनुपातों को समझकर व्यवसाय अपने काम-काज और कैपिटल फ़्लो प्रबंधन में सुधार के एरियाज़ का पता लगा सकते हैं।
4. पूर्व चेतावनी प्रणाली
संभावित वित्तीय चुनौतियों की भविष्यवाणी करने के लिए व्यवसायों के लिए लिक्विडिटी अनुपातों पर नज़र रखना अहम होता है। इन अनुपातों में एकदम से आने वाली गिरावट कैश फ़्लो या फिर यहाँ तक कि आगामी लिक्विडिटी संकट की ओर भी इशारा कर सकती है। ऐसे में, स्थिति को फ़ौरन संभालकर उसे बदतर होने से रोकने के लिए मैनेजमेंट को उचित कार्रवाई करनी चाहिए।
लिक्विडिटी अनुपातों पर नज़र रखकर व्यवसाय यह सुनिश्चित कर पाते हैं कि अपने फ़िस्कल दायित्वों को पूरा कर एक लंबी अवधि के दौरान अपनी आर्थिक स्थिति में स्थिरता बरकरार रखने के लिए उनके पास पर्याप्त कैश रिज़र्व हैं।
5. निवेश समाधान लेना
बात जब निवेश-व्यवस्था करने की आती है, तो लिक्विडिटी अनुपात एक अहम भूमिका निभाते हैं। इन मेट्रिक्स की मदद से निवेशक कैश जैनरेट कर अपने वित्तीय कर्तव्यों को कारगर ढंग से प्रबंधित करने की किसी कंपनी की क्षमता को निर्धारित करते हैं।
इसके अलावा, किसी कंपनी को लोन या क्रेडिट शर्तें मुहैया कराते वक्त लिक्विडिटी अनुपातों का इस्तेमाल कर लेनदार क्रेडिट जोखिम का मूल्यांकन भी करते हैं। नतीजतन कंपनी की वित्तीय स्थिरता और स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त करने के लिए ये अनुपात अहम होते हैं व इनका इस्तेमाल कर स्टेकहोल्डर सोचे-समझे फ़ैसले ले पाते हैं।
अलग-अलग प्रकार के लिक्विडिटी अनुपात
आजकल अनुपातों का इस्तेमाल कर अल्पकालिक दायित्वों को पूरा करने के लिए एसेट्स (एसेट्स लिक्विडिटी) को डाउन मनी में तब्दील करने की किसी फ़र्म की क्षमता का मूल्यांकन करने का रिवाज़ है। फ़ंड्स की लिक्विडिटी की डिग्री निर्धारित करने के लिए इनमें से हरेक अनुपात के तहत अलग-अलग इंडिकेटरों और वेरिएबल्स का इस्तेमाल किया जाता है। लिक्विडिटी अनुपात के प्रमुख उदाहरण ये हैं:
करेंट रेशियो
करेंट रेशियो एक वित्तीय मेट्रिक होता है, जिसके तहत कंपनी के एसेट्स की उसकी मौजूदा रुकावटों से तुलना की जाती है। करेंट (या फ़्लोटिंग) एसेट्स में कैश, जारी की जा सकने वाली सिक्योरिटीज़, डेबिट ऋणग्रस्तता, और इन्वेंटरी आते हैं, जबकि करेंट दायित्वों में वे सभी अल्पकालिक दायित्व शामिल हैं, जिन्हें एक साल के अंदर-अंदर निपटाया जाना चाहिए।
करेंट रेशियो को 100 से गुणा कर प्रतिशत के तौर पर व्यक्त किया जा सकता है। यह प्रतिशत अपने करेंट एसेट्स का इस्तेमाल कर अपने करेंट दायित्वों का भुगतान करने की किसी कंपनी की क्षमता को दर्शाती है। एक बड़ा करेंट रेशियो इस बात का सूचक होता है कि फ़र्म के पास ज़्यादा संसाधन और बेहतर लिक्विडिटी पोज़ीशन है।
अगर करेंट रेशियो 100% के पार चला जाए, तो इसका मतलब यह होता है कि कंपनी के पास करेंट अनसिक्योर्ड ऋण से ज़्यादा करेंट एसेट्स हैं। वित्तीय रूप से मज़बूत कंपनी के लिए आमतौर पर इसे एक अनुकूल स्थिति माना जाता है।
दूसरी तरफ़, करेंट रेशियो के 100% से नीचे चले जाने पर अपने करेंट लोन्स का अपने मौजूदा एसेट्स के माध्यम से भुगतान करने में कंपनी को दिक्कत आ सकती है। लेकिन यह स्थिति चिंता का तात्कालिक विषय तभी होगी, जब यह बार-बार देखने को मिले।
एसिड टेस्ट अनुपात (क्विक रेशियो)
क्विक रेशियो इन्वेंटरीज़ के अलावा लिक्विड एसेट्स के माध्यम से अल्पकालिक दायित्वों को पूरा करने की किसी कंपनी की क्षमता का मूल्यांकन करने वाला एक वित्तीय बेंचमार्क होता है। इसमें करेंट रेशियो वाले वेरिएबल्स का ही इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इन्वेंटरीज़ को हिसाब में लिए बिना। क्विक रेशियो का फ़ॉर्मूला कुछ इस प्रकार होता है:
आसानी से बेचे गए बॉन्ड्स को क्विक रेशियो के हिसाब-किताब में शामिल कर लिया जाता है। वह इसलिए कि ऐसे बॉन्ड्स को पंजीकरण योग्य उपकरण माना जाता है। ये उपकरण बेहद लिक्विड होते हैं व इन्हें कम समय में आसानी से नकद में परिवर्तित करवाया जा सकता है। जारी की जा सकने वाली सिक्योरिटीज़ को क्विक रेशियो में शामिल कर अपना पहला डिबेंचर करने की कंपनी की क्षमता का बेहतर मूल्यांकन प्राप्त किया जाता है।
क्विक रेशियो किसी कंपनी की वित्तीय व्यावहारिकता का अहम इंडिकेटर होता है। यह मापता है कि अपनी अल्पकालिक फ़ंडिंग प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए कोई कंपनी इन्वेंटरीज़ को छोड़कर अपनी लिक्विड पूंजी पर कितना निर्भर कर सकती है।
एक ऊँचा क्विक रेशियो इन्वेंटरीज़ की बिक्री पर निर्भर किए बगैर अपने कर्ज़ चुकाने और अन्य दायित्वों को पूरा करने की किसी फ़र्म की बेहतर क्षमता को दर्शाता है। कंपनी की लिक्विडिटी पोज़ीशन और अप्रत्याशित वित्तीय चुनौतियों से निपटने की उसकी क्षमता का आकलन करने में यह रेशियो फ़ायदेमंद साबित होता है।
एब्सॉल्यूट लिक्विडिटी रेशियो (कैश रेशियो)
लिक्विडिटी पोज़ीशन का हिसाब लगाते वक्त एब्सॉल्यूट लिक्विडिटी रेशियो, या फिर लिक्विडिटी कैश मेट्रिक, में एकाउंट्स इनवॉइसों और इन्वेंटरीज़ को शामिल नहीं किया जाता है। इस लिक्विडिटी अनुपात का फ़ॉर्मूला कुछ इस प्रकार दिखाई देता है:
सिर्फ़ ज़्यादातर लिक्विड फ़ंड्स पर ध्यान केंद्रित कर यह अनुपात अपनी मौजूदा प्रतिबद्धताओं का पालन करने की कंपनी की इच्छा का विस्तृत विश्लेषण करता है।
ये लिक्विड फ़ंड कंपनी के लिए आसानी से उपलब्ध होते हैं, जिसके चलते ज़रूरत पड़ने पर अप्रत्याशित उच्च राशियों का कंपनी फ़ौरन भुगतान कर पाती है। अल्पकालिक फ़िस्कल प्रतिबद्धताओं के प्रबंधन में यह पहलू एक बेशकीमती लाभ के तौर पर काम करता है।
डिफ़ेंसिव इंटरवल रेशियो
डिफ़ेंसिव इंटरवल पीरियड (DIP) या बेसिक डिफ़ेंस इंटरवल (BDI) के नाम से भी जाने जाना वाला डिफ़ेंसिव इंटरवल रेशियो (DIR) एक वित्तीय माप होता है, जो यह निर्धारित करता है कि कोई कंपनी गैर-करेंट पूंजी या तीसरी पार्टी वाले वित्तीय संसाधनों का सहारा लिए बगैर कितने दिनों तक अपने काम-काज को जारी रख सकती है। यह मेट्रिक उन दीर्घकालिक एसेट्स को ध्यान में रखता है, जिन्हें मौजूदा फ़िस्कल वर्ष के दौरान पूरी तरह से प्राप्त नहीं किया जा सकता।
निर्णय
किसी फ़र्म के विभिन्न आर्थिक इंडिकेटरों के वित्तीय आकलन के लिए लिक्विडिटी अनुपात आवश्यक उपकरण होते हैं। संगठन की अर्थव्यवस्था की स्थिति को सटीक ढंग से निर्धारित कर व्यावसायिक प्रक्रियाओं और कंपनी के काम-काज की समूची दक्षता को प्रभावित करने वाले एरियाज़ की पहचान करने में वे मददगार साबित होते हैं।
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