लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस सिद्धांत क्या है?
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निवेशकों और केंद्रीय बैंकों के निर्णयों के केंद्र में पैसा ही होता है, और पैसे को एसेट्स से बैंकनोटों में परिवर्तित करने की क्षमता ही ट्रेडरों के निवेश और बचत निर्णयों को प्रेरित करती है।
इसी को लिक्विडिटी कहा जाता है, जो समूची वित्तीय ट्रेडिंग प्रणाली और सिक्योरिटीज़ बाज़ार की रीढ़ होती है, फिर भले ही वह स्टॉक हों, बॉन्ड हों, कमोडिटीज़ हों, विदेशी मुद्रा CFD जोड़े हों, या फिर डिजिटल एसेट्स हों।
यहाँ सवाल यह उठता है कि सिक्योरिटीज़ होल्ड करने के बजाय हर कोई नकद जमा करना क्यों नहीं शुरू कर देता? और यहीं बैंक काम में आते हैं, जो लिक्विड कैश को गैर-लिक्विड एसेट्स में परिवर्तित करने की कीमत के तौर पर मुनाफ़े मुहैया कराते हैं।
यही लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस सिद्धांत का सार है। इस सिद्धांत के बारे में और विस्तार से बात करके आइए देखते हैं कि वित्तीय बाज़ारों में यह आखिर कैसे काम करता है।
प्रमुख बिंदु
- लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस सिद्धांत के अनुसार गैर-लिक्विड एसेट्स रखने के बजाय लोग नकद पैसा रखना पसंद करते हैं।
- 1936 में प्रकाशित अपनी किताब, “The General Theory of Employment, Interest, and Money” (रोज़गार, ब्याज, और पैसे का आम सिद्धांत) में अर्थशास्त्री जॉन कीन्स ने लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस सिद्धांत ईजाद किया था।
- इस सिद्धांत की अवधारणा यह है कि लेन-देन, एहतियाती, और अटकलबाज़ी वाले उद्देश्यों के लिए लोग नकद को प्राथमिकता देते हैं।
लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस सिद्धांत को समझना
लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस सिद्धांत के अनुसार सिक्योरिटीज़ में निवेश करने के बजाय लोग पैसा रखना ज़्यादा पसंद करते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि नकद को आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है व सीधे खरीदारी और रोज़मर्रा के लेन-देन के लिए उसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
बैंकनोट पैसे का सबसे लिक्विड रूप है, जब कि स्टॉक, बॉन्ड, व अन्य एसेट कम लिक्विड होते हैं। ऐसे में, सिक्योरिटीज़ को नकद में परिवर्तित करने के लिए कई कदम उठाए जाने चाहिए, जैसे कि लेन-देन को पूरा करने के लिए दूसरी पार्टी की तलाश करना, उसकी कीमत को मैच कारण, व किसी माध्यम को ढूँढना, फिर भले ही वह कोई एक्सचेंज प्लेटफ़ॉर्म हो या फिर p2p भुगतान।
गौरतलब है कि कुछ निवेश और बचत खाते उपयोगकर्ता के पैसे को एक तय अवधि के लिए लॉक कर देते हैं व उस पैसे को किसी जुर्माने के बगैर अकाउंट से नहीं निकाला जा सकता है, जिसके चलते आपको अपने ही पैसे पर नुकसान हो जाता है।
लेकिन पैसे को अपने पास रखने से उसपर कोई रिटर्न नहीं आती। और यहीं बैंकों की भूमिका अहम हो जाती। बैंक सार्वजानिक पैसे का इस्तेमाल कर वित्तीय सेवाएँ मुहैया कराने वाले लाभकारी संगठन होते हैं।
अपने लिक्विड पैसे के बदले नकद धारकों को वे ब्याज दरें मुहैया कराते हैं, जिनके चलते वे अपने पैसे से पैसा कमा पाते हैं। इसे अपने सबसे लिक्विड एसेट को कम लिक्विड एसेट के बदले एक्सचेंज करके निवेशकों को मिले इनाम के तौर पर भी देखा जाता है।
लिक्विडिटी का बलिदान देने की कीमत उस अवधि पर निर्भर करती है, जिसके दौरान निवेशक अपने नकद पैसे को त्याग देता है। इसलिए लॉन्ग-टर्म बॉन्ड और बचत शॉर्ट-टर्म निवेशों से ज़्यादा रिटर्न देते हैं।
लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस अवधारणा का विकास
ऐतिहासिक अर्थशास्त्री जॉन कीन्स ने लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस सिद्धांत विकसित किया था, जिसमें उन्होंने समझाया था कि ब्याज दरें और निवेशकों के निर्णय कैसे काम करते हैं।
ज़ाहिर है कि लोग कम लागत पर नकद में फ़टाफ़ट परिवर्तित किए जा सकने वाले लिक्विड एसेट्स को होल्ड करना पसंद करते हैं। इसके चलते अतिरिक्त भुगतानों या प्रक्रियाओं के बिना अपने रोज़मर्रा के लेन-देन वे फौरन निपटा जो पाते हैं।
दूसरी तरफ़, अपनी लिक्विड होल्डिंग्स को जाने देकर बॉन्ड्स या स्टॉक्स जैसे कम लिक्विड एसेट्स में उन्हें परिवर्तित करने के लिए ब्याज लोगों को प्रोत्साहित करता है। इस सिद्धांत के अनुसार कोई एसेट जितना कम लिक्विड होगा, उससे मिलने वाले इनाम और ब्याज दर उतने ही ज़्यादा होंगे।
इसलिए आर्थिक मंदी या भारी महँगाई के दौरान नकद की माँग में बढ़ोतरी आ जाती है, और लिक्विड एसेट्स का त्याग करने की बढ़ी हुई कीमत की वजह से ब्याज दर में भी बढ़ोतरी आ जाती है।
निवेशकों के निर्णयों को लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस कैसे प्रभावित करती हैं?
कीन के लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस सिद्धांत के अनुसार ज्यादातर ट्रेडिंग बाज़ार और वित्तीय नीतियाँ लिक्विडिटी की माँग पर आधारित होती हैं। यह माँग आर्थिक हालातों के अनुसार बदलती रहती है। लिक्विड और गैर-लिक्विड एसेट्स के बीच किए जाने वाले इस सौदे के दौरान आपको तीन प्रमुख फ़ैसले करने होते हैं।
लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस और रिटर्न कर्व
बाज़ार के आम हालातों में समय के साथ-साथ रिटर्न कर्व ऊपर की ओर जाता है, जो दर्शाता है कि शॉर्ट-टर्म सिक्योरिटीज़ की तुलना में लॉन्ग-टर्म बॉन्ड्स और निवेशों से ज़्यादा आय होती है। वह इसलिए कि जितना ज़्यादा जोखिम, उतनी ही ज़्यादा रिटर्न।
लेकिन आर्थिक मंदी के दौरान जब अनिश्चितता की वजह से लोग अपने नकद पैसे को होल्ड करते हैं या फिर अधिक शॉर्ट-टर्म निवेश की माँग करते हैं, तो लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस कर्व चपटा होने लगता है, जिससे तेज़ी से मैच्योर होने वाले बॉन्ड्स को ज़्यादा अहमियत मिलती है।
लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस और ब्याज दरें
लिक्विडिटी की माँग के आधार पर केंद्रीय बैंक और नीति-निर्माता ब्याज दरों और उधार पर निर्णय लेते हैं। महँगाई दर ज़्यादा होने पर पैसे का मूल्य कम हो जाता है व निवेश बेकार हो जाते हैं क्योंकि उस ब्याज से पर्याप्त रिटर्न जो नहीं मिलती।
इसलिए आर्थिक विकास में बढ़ोतरी लाकर लोगों को अपने निवेश बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बैंक ब्याज दरों को बढ़ा देते हैं।
लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस और निवेश
आर्थिक कारकों के आधार पर निवेशक इस बात का निर्णय करते हैं कि उन्हें निवेश करना चाहिए या नहीं। स्थिरता और आर्थिक विकास के दौरान, कम लिक्विड एसेट ज़्यादा सुरक्षित हो जाते हैं, और दीर्घकालिक मुनाफ़ों की कीमत में बढ़ोतरी आ जाती है।
लेकिन मंदी और अनिश्चितता के दौरान लोग कैश और शॉर्ट-टर्म बॉन्ड्स जैसे सुरक्षित एसेट्स का चयन करते हैं, जिन्हें आसानी से परिवर्तित कर भुगतानों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस के उद्देश्यों का सिद्धांत
लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस ढाँचा पूंजी को लिक्विड व गैर-लिक्विड एसेट्स के बीच आवंटित करते समय लोगों द्वारा लिए जाने वाले फ़ैसलों को प्रेरित करते तीन प्रमुख कारकों पर निर्भर करता है:
लेन-देन करना
पैसा एक्सचेंज और लेन-देन का माध्यम होता है। इसलिए ब्याज दरों और बैंक से मिलने वाले प्रोत्साहनों की परवाह किए बगैर रोज़मर्रा का सामान और सेवाएँ खरीदने के लिए लोगों को लिक्विड एसेट्स की ज़रूरत पड़ती है। लिक्विडिटी का स्तर घरेलू आय और खर्च पर निर्भर करता है।
लेन-देन के उद्देश्य से यह बात समझ आ जाती है कि रोज़मर्रा के अपने काम निपटाने और लेन-देन करने के लिए लोग नकद की माँग करते हैं। ऐसे में, बड़ी आय वाले लोगों का खर्चा भी ज़्यादा होता है व उन्हें ज्यादा लिक्विड पैसे की भी ज़रूरत होती है, जिसके चलते वे बड़े रिटर्न वाले निवेशों की तलाश करते हैं।
अनिश्चितता के दौरान गारंटी
जब अर्थव्यवस्था पर मंदी की मार होती है, तब कीमती रिटर्न प्रदान करने या फिर यहाँ तक कि निवेशकों का पैसे लौटाने की अपनी क्षमता से भी बैंक हाथ धो बैठते हैं। इसलिए निवेशों के बजाय लोग अपनी पूंजी को नकद एसेट्स में रखते हैं।
साथ ही, परिवार अक्सर घर शिफ़्ट करने या अप्रत्याशित इमरजेंसी के लिए तैयार रहते हैं। इसलिए इन ज़रूरतों के लिए वे लिक्विड एसेट्स की माँग करते हैं।
अटकलें लगाना और कमाई करना
अटकलें लगाने के लिए निवेशक और संस्थान बाज़ार के भावी अनुमानों के आधार पर अक्सर अपने पूंजी निवेशों को कम-ज़्यादा करते रहते हैं।
ऐसे में, बाज़ार की रिकवरी का पूर्वानुमान होने पर ब्याज की संभवतः उच्च दरों का फ़ायदा उठाने के लिए अटकलबाज़ अपने नकद के बदले लॉन्ग-टर्म बॉन्ड और स्टॉक प्राप्त कर लेते हैं।
लेकिन अनिश्चितता के दौर में लोग और कंपनियाँ अक्सर ज़्यादा नकद रखते हैं, भले ही इस पैसे से कोई आय न होती हो।
लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस मॉडल के खिलाफ़ तर्क
सही मायने में तार्किक होने के बावजूद कई लोग इस मॉडल की आलोचना भी करते हैं क्योंकि अन्य कारकों को नज़रंदाज़ कर खासकर ब्याज दर वाले लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस मॉडल के तहत यह मॉडल मान लेता है कि अपनी दरों को बैंक लोगों की माँग के अनुसार एडजस्ट करते हैं, न कि लोगों की माँग बैंक दरों के अनुसार बदलती है।
आलोचकों का कहना है कि महँगाई दरों, पैसे की सप्लाई, क्रेडिट जोखिम, निवेश के अवसरों, और डिफ़ॉल्ट जोखिमों जैसे कई आर्थिक कारक बैंक के उधार और निवेश की रिटर्न्स को प्रभावित करते हैं, जिससे लिक्विड पूंजी की ज़रूरत भी प्रभावित होती है।
इसके अलावा, कई लोगों का मानना है कि आज के ज़माने में यह सिद्धांत प्रासंगिक नहीं है। वह इसलिए कि बेहतर रिटर्न्स की खातिर ब्याज की उच्च दरों वाली अर्थव्यवस्थाओं के बीच पैसे के प्रवाह को वैश्वीकरण सुविधाजनक बनाता है।
निष्कर्ष
लिक्विडिटी प्रेफ़रेंस सिद्धांत को अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कीन्स द्वारा विकसित किया गया था, जिनका मानना था कि घरेलो और संस्थागत पैसे की माँग की वजह से ब्याज दरों में बढ़ोतरी आती है।
उनका कहना था कि रोज़मर्रा के लेन-देन करने, अनिश्चितता-काल में सुरक्षित महसूस करने, और ट्रेडिंग बाज़ारों में अटकलें लगाने के लिए लोगों को नकद पैसे जैसे आसानी से कन्वर्ट किए जा सकने वाले एसेट्स की ज़रूरत होती है।
इस सिद्धांत की धारणा इस बात के इर्द-गिर्द घूमती है कि शॉर्ट-टर्म निवेशों की तुलना में लॉन्ग-टर्म बॉन्ड ज़्यादा फ़ायदेमंद होते हैं क्योंकि उनके तहत अपने लिक्विड एसेट्स के बदले उपयोगकर्ताओं को कम लिक्विड सिक्योरिटीज़ मिलती हैं। ऐसे में, अपने नकद को छोड़ने के लिए बॉन्ड की कीमतें लोगों को प्रोत्साहित करने वाले इनामों के तौर पर काम करती हैं।
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