क्रिप्टो में CFD बनाम फ़्यूचर्स: गौर करने लायक व्यावहारिक अंतर
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क्रिप्टो ट्रेडिंग अनेक ट्रेडिंग उपकरणों और तकनीकों वाले एक जटिल क्षेत्र में विकसित हो चुकी है। शॉर्ट टर्म मुनाफ़ा कमाने के लिए छोटे-मोटे एक्सचेंजों या आर्बिट्राज वाले दिन अब अतीत का किस्सा बन चुके हैं। 2024 में भारी और बरकरार रखे जा सकने वाले मुनाफ़े जैनरेट करने के लिए ट्रेडरों को ज़्यादा जटिल ट्रेडिंग रणनीतियों में महारत हासिल करनी होगी।
क्रिप्टो में आवश्यक ज्ञान का स्तर ऊँचा उठ चुका है, और प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए रिटेल ट्रेडरों को विभिन्न ट्रेडिंग उपकरणों से वाकिफ़ रहना चाहिए। क्रिप्टो और आमतौर पर ट्रेडिंग बाज़ारों में ट्रेडिंग फ़्यूचर्स और कॉन्ट्रैक्ट फ़ॉर डिफ़रेंसिस (CFD) दो ऐसे ही एडवांस्ड मैकेनिज़्म हैं। इस लेख में हम CFD और फ़्यूचर्स बाज़ारों की प्रकृति और अहम अंतरों का विश्लेषण कर सही ट्रेडिंग रणनीति का चयन करते समय एक सोचा-समझा फ़ैसला लेने में आपकी मदद करेंगे।
प्रमुख बिंदु
- डेरीवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट वे भावी समझौते होते हैं, जिनके मूल्य में बुनियादी एसेट प्राइस के अनुसार बदलाव आ जाता है।
- फ़्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट किसी विशिष्ट एसेट को भविष्य में किसी तय कीमत पर खरीदने के समझौते होते हैं।
- CFD फ़्यूचर्स से काफ़ी मिलते-जुलते हैं, लेकिन उनके तहत एसेट के स्वामित्व की माँग नहीं की जाती। बजाय इसके, CFD का निपटान एसेट की कीमत के अंतर वाली राशि का भुगतान कर किया जाता है।
- फ़्यूचरर्स कॉन्ट्रैक्ट ज़्यादा पारदर्शी होते हैं, लेकिन उनके तहत पूंजी की आवश्यकता भी अधिक होती है, जबकि CFD ज़्यादा किफ़ायती लेकिन कभी-कभी ज़्यादा जोखिमपूर्ण भी होते हैं।
क्रिप्टो डेरीवेटिव्स बाज़ार की छानबीन
फ़्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट और CFD वित्तीय डेरीवेटिव्स की श्रेणी में आते हैं, जो भविष्य में पूरा किया जाने वाले एक प्रकार का अनुबंध होता है। डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स को किसी विशिष्ट एसेट को एक तय कीमत और तारीख पर एक्सचेंज, खरीदने या बेचने के लिए सेट किया जाता है। डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स का मूल्य बुनियादी एसेट से जुड़ा होता है, जिससे कॉन्ट्रैक्ट प्राइस में बढ़ोतरी या गिरावट आ जाती है।
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ज़्यादातर मामलों में डेरीवेटिव्स लिवरेज का इस्तेमाल करते हैं, जिसके चलते समूचे एसेट के स्वामित्व के लिए भुगतान किए बगैर पार्टियाँ अधिक एसेट्स को प्राप्त कर पाती हैं। डेरीवेटिव कॉन्ट्रैक्ट कई प्रकार के होते हैं, जैसे फ़्यूचर्स, ऑप्शन्स, स्वैप्स, कॉन्ट्रैक्ट्स फ़ॉर डिफ़रेंस, इत्यादि।
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हर प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट के ट्रेडिंग और वित्तीय बाज़ारों में अपने अलग-अलग कॉन्ट्रैक्चुअल दायित्व और व्यावहारिक उपयोग होते हैं। डेरीवेटिव्स सिर्फ़ ट्रेडिंग में ही उपयोगी नहीं होते, क्योंकि उनकी बदौलत कंपनियाँ अपने फ़ायदे के लिए ऋण समझौतों और अन्य व्यावसायिक अनुबंधों को स्वैप कर सकती हैं।
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क्रिप्टो फ़्यूचर्स का मतलब
फ़्यूचर्स अनुबंध बाज़ार के दो भागीदारों के बीच किसी विशिष्ट एसेट को एक पूर्वनिर्धारित कीमत और भावी तारीख पर खरीदने के तय समझौते होते हैं।
बाज़ार का मौजूदा प्राइस फ़्यूचर्स कॉन्ट्रैक्टों की कीमत को भारी रूप से प्रभावित कर उसे और किफ़ायती या महँगा बना देता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि एसेट का मूल्य क्या रुख लेता है। उदाहरण के लिए, अगर एसेट की कीमत भावी कीमतों के करीब जाती है, तो इन कॉन्ट्रैक्ट्स की माँग बढ़ जाएगी क्योंकि निवेशक उस एसेट को कम दाम पर खरीदना चाहेंगे।
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पहली नज़र में आसान-सी लगने वाली फ़्यूचर्स ट्रेडिंग की उन लोगों और कंपनियों के लिए काफ़ी व्यावहारिक अहमियत होती है, जो अपनी लाभकारिता को मैक्सिमाइज़ करने के लिए जोखिम को करना चाहते हैं।
उदाहरण के तौर पर, फ़्यूचर्स का इस्तेमाल किसी विशिष्ट क्रिप्टो एसेट की कीमतों में आने वाले बदलावों का पूर्वानुमान लगाकर रुझान का सही अनुमान लगाकर मुनाफ़ा कमाने के लिए किया जा सकता है, जिसके चलते वर्चुअल मुद्राओं को निवेशक या तो कम दाम पर खरीद पाते हैं या फिर उन्हें ऊँचे दाम पर बेच पाते हैं।
साथ ही, अपनी प्रमुख रणनीति के विपरीत फ़्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स को खरीदकर ट्रेडर अपने जोखिमों को हेज भी कर सकते हैं। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि बाज़ार की कीमतों के इधर-उधर हो जाने से उन्हें भारी नुकसान नहीं उठाने पड़ेंगे। यह प्रथा खासकर ब्लॉकचेन क्षेत्र में अहम होती है, क्योंकि इसकी बदौलत क्रिप्टो के अस्थिर माहौल में निवेशक अपेक्षाकृत सुरक्षित रह पाते हैं।
CFD क्या होते हैं?
फ़्यूचर्स की ही तरह, CFD भी डेरीवेटिव उपकरण होते हैं, लेकिन इनमें एक बड़ा अंतर होता है। CFD वे वित्तीय अनुबंध होते हैं, जिनके तहत दो पार्टियाँ एक पूर्वनिर्धारित तारीख पर किसी एसेट की कीमत पर एक मिलता-जुलता समझौता सेट कर देती हैं, लेकिन डेडलाइन के करीब जाकर उन्हें सिर्फ़ कीमतों के अंतर को ही एक्सचेंज करना होता है। इसलिए अपने अनुबंध में CFD स्वामित्व को शामिल नहीं करते, जिसके चलते खरीदारी की कोई भी भारी-भरकम प्रतिबद्धता किए बगैर निवेशक कीमतों में आने वाले बड़े-बड़े बदलावों से मुनाफ़ा कमा पाते हैं।
छोटे बजट वाले नए निवेशकों के लिए CFD के कई फ़ायदे होते हैं, जिन्हें भुनाकर वे अपनी वित्तीय सीमा से बाहर की पोज़ीशनों को भी प्राप्त कर पाते हैं। लेकिन फ़्यूचर्स की तुलना में CFD ज़्यादा विशिष्ट होते हैं, क्योंकि वे सिर्फ़ कीमतों में आने वाली मूवमेंट्स से हुए मुनाफ़ों के लिए ही उपयोगी होते हैं।
इसलिए CFD निवेशों का इस्तेमाल दो पार्टियों के दरमियाँ कॉन्ट्रैक्ट्स या एसेट्स को एक्सचेंज करने के लिए नहीं किया जा सकता, जिसके चलते यह उपकरण ट्रेडिंग जगत में संभावित लाभ प्राप्त करने या जोखिम को कम करने के लिए खासा उपयोगी साबित होता है।
CFD बनाम फ़्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट: अहम अंतर
उपर्युक्त विश्लेषण के अनुसार फ़्यूचर्स और CFD, दोनों ही विशिष्ट एसेट्स की भावी प्राइस मूवमेंट्स पर केंद्रित डेरीवेटिव अनुबंध होते हैं। CFD और फ़्यूचर्स, दोनों का विदेशी मुद्रा, स्टॉक्स, कमोडिटीज़, और दुनियाभर में लगभग किसी भी ट्रेड योग्य एसेट के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन ये दोनों उपकरण एक-दूसरे से कई मायनों में काफ़ी भिन्न होते हैं, और यह भिन्नता ही इन्हें अलग-अलग मामलों में उपयोगी बनाती है।
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अनुबंध की संरचना और स्वामित्व
फ़्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट एक पूर्वनिर्धारित तारीख पर समाप्त हो जाते हैं। इसमें रोलओवर की कोई संभावना नहीं होती, फिर भले ही दोनों ही पक्ष इसके लिए राज़ी ही क्यों न हों। दूसरी तरफ़, CFD में रोलओवर का विकल्प होता है, जिसके चलते उपयोगकर्ता आरंभिक समय-सीमा से आगे भी अपने समझौते को एक्सटेंड कर पाते हैं। क्योंकि फ़्यूचर्स अनुबंधों को ज़्यादातर फ़्यूचर्स एक्सचेंज बाज़ारों पर ही ट्रेड किया जाता है, इनमें अनुबंध मध्यस्तता के लिए तीसरी पार्टी वाली कमीशन और नेशनल फ़्यूचर्स एसोसिएशन (NFA) जैसे अतिरिक्त केंद्रीकृत शुल्क भी शामिल होते हैं।
इसके विपरीत, CFD को अक्सर ओवर द काउंटर (OTC) ट्रेड किया जाता है, यानी कि दोनों पार्टियाँ किसी डेडिकेटेड तीसरी पार्टी की अहम निगरानी के बिना सीधे अनुबंध में चली जाती हैं। इसलिए CFD के तहत पार्टियों का स्वतः ही कम खर्चा होता है।
बाज़ार के प्रकार और पूंजी आवश्यकताएँ
क्योंकि ज़्यादातर CFD OTC मैकेनिज़्म होते हैं, CFD बनाने वाला ब्रोकर अक्सर सौदे का दूसरा पक्ष ले लेता है। नतीजतन ट्रेडर अक्सर अपने सामने ज़्यादा अनुभवी और ताकतवर काउंटरपार्टियों को पाते हैं। इसके अलावा, OTC अनुबंध विकेंद्रीकृत एक्सचेंज अनुबंधों जितने पारदर्शी नहीं होते, जिससे अनुभवहीन निवेशकों को नुकसान पहुँच सकता है।
दूसरी ओर, फ़्यूचर्स को जाने-माने एक्सचेंजों पर ट्रेड किया जाता है, जो ज़्यादा विनयमित और पारदर्शी होते हैं व कॉन्ट्रैक्ट और उसकी संबंधित तारीखों की समूची आवश्यक जानकारी मुहैया कराते हैं। इसलिए फ़्यूचर्स ज़्यादा प्रेडिक्टेबल और सुरक्षित होते हैं, क्योंकि ब्रोकर और एक्सचेंज ट्रेडरों की विपरीत पोज़ीशनें न लेकर उन्हें दूसरी पार्टी के साथ फ़्यूचर्स ट्रेड करने के लिए रेफ़र कर देते हैं।
जहाँ तक पूंजी आवश्यकताओं का सवाल है, CFD ज़्यादा शांत होते हैं, जिसके फलस्वरूप इनके तहत ट्रेडर छोटी-छोटी बेस राशियों के साथ कॉन्ट्रैक्ट बना या खरीद सकते हैं। दूसरी तरफ़, फ़्यूचर्स अनुबंधों की बेस आवश्यकताएँ ज़्यादा होती हैं व आमतौर पर वे CFD से बड़े होते हैं।
हर मैकेनिज़्म के लिए कौनसी रणनीतियाँ बेहतर होती हैं?
CFD या फ़्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट की बहस काफ़ी अरसे से चल रही है। नए निवेशक अक्सर इन दो विकल्पों को एक ही उपकरण मानने की गलती कर बैठते हैं। लेकिन ये मैकेनिज़्म अलग-अलग स्थितियों में उपयोगी होते हैं व इनका परस्पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। आपके हालातों और वित्तीय क्षमताओं को मद्देनज़र रखते हुए इन मैकेनिज़्मों के इस्तेमाल के सबसे बेहतरीन मामले कुछ इस प्रकार हैं।
फ़्यूचर्स अनुबंधों पर कब विचार करना चाहिए?
फ़्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट आमतौर पर बड़े बजट और रणनीति की विशिष्ट समय-सीमाओं वाले ट्रेडरों के लिए उपयुक्त होते हैं। ये उपकरण पारदर्शी होते हैं और ट्रेडरों को ये ब्रोकरों के खिलाफ दाँव लगाने से रोकते हैं, जो कुछ मामलों में खतरनाक साबित हो सकता है।
लेकिन फ़्यूचर्स की ऊँची पूंजी आवश्यकताएँ होती हैं व इनके तहत तारीख गुज़र जाने के बाद समूची कॉन्ट्रैक्ट राशि को खरीदा जाता है। इसलिए फ़्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट महँगे और समय के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, जो छोटे-छोटे निवेशकों के लिए शायद उपयुक्त न हो।
CFD पर कब विचार करना चाहिए?
CFD की समाप्ति की कोई निश्चित तारीख नहीं होती व इनके तहत ट्रेडरों को कॉन्ट्रैक्ट के अंत तक एसेट को खरीदने की कोई आवश्यकता नहीं होती। ये ज़्यादा लचीले भी होते हैं, यानी कि इनमें पूंजी की आवश्यकता कम होती है और इनके कमीशन शुल्क किफ़ायती होते हैं। इसलिए नए निवेशकों के लिए कोई CFD ट्रेडिंग एकाउंट खोलना ज़्यादा आसान होता है।
लेकिन अपनी ओवर द काउंटर प्रकृति के चलते CFD ट्रेडिंग को ज़्यादा जोखिमपूर्ण भी माना जाता है, जिससे ट्रेडरों को अपने प्रदाताओं के खिलाफ़ पोज़ीशन अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। ज़्यादातर मामलों में, प्राइस मूवमेंट्स को कहीं बेहतर ढंग से समझने वाले ब्रोकर और एक्सचेंज ऐसी पोज़ीशनें नहीं लेते, जो लंबी अवधि में गैर-लाभकारी हो सकती हैं। इसलिए नए-नवेले निवेशकों को उनके खिलाफ़ दाँव नहीं लगाना चाहिए।
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अंतिम विचार – CFD बनाम फ़्यूचर्स ट्रेडिंग
CFD और फ़्यूचर्स अनुबंध मिलते-जुलते लगने वाले दो ऐसे मैकेनिज़्म होते हैं, जो दरअसल काफ़ी अलग-अलग उद्देश्यों को पूरा करते हैं। अनुभवी निवेशकों के लिए इन दोनों ही मैकेनिज़्मों का इस्तेमाल अस्थिर या अक्सर बदलते ट्रेडिंग बाज़ारों में मुनाफ़े को मैक्सिमाइज़ करने और जोखिम को हेज करने के लिए किया जा सकता है।
इसलिए इन दोनों ही अनुबंधों को अच्छे से समझकर उनके इस्तेमाल की स्थितियों की बेहतरीन जानकारी होना ज़रूरी होता है। एक नियम के तौर पर, CFD में ट्रेडिंग आपको उन रणनीतियों के लिए करनी चाहिए, जिनके तहत एसेट की खरीदारी की ज़रूरत न हो, और फ़्यूचर्स उन दीर्घकालिक ट्रेडिंग रणनीतियों के लिए उचित होते हैं, जिनके तहत अंत में एसेट का स्वामित्व हासिल करना हो। इसलिए सही तकनीक बनाने के लिए अपने कॉन्ट्रैक्ट्स का ठीक से चयन कर अपने विशिष्ट हालातों पर विचार कर लें!
आम सवाल-जवाब
क्रिप्टो फ़्यूचर्स क्या होते हैं?
क्रिप्टो फ़्यूचर्स हर अहम पहलू में नियमित फ़्यूचर्स अनुबंधों जैसे ही होते हैं। ब्लॉकचेन के अस्थिर जगत में जोखिमों को कम करने की अपनी क्षमता के चलते क्रिप्टो फ़्यूचर्स काफ़ी लोकप्रिय हो गए हैं।
क्रिप्टो में स्पॉट पोज़ीशन किसे कहते हैं?
क्रिप्टो ट्रेडिंग में कोई स्पॉट पोज़ीशन डेरीवेटिव अनुबंधों के विपरीत होती है, क्योंकि इसके तहत भविष्य के लिए कोई कॉन्ट्रैक्ट बनाने के स्थान पर किसी एसेट को “ऑन द स्पॉट” खरीदा या बेचा जाता है।
स्पॉट बाज़ारों और फ़्यूचर्स बाज़ारों में क्या फ़र्क होता है?
स्पॉट बाज़ारों को फ़ौरन एक्सीक्यूट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जबकि फ़्यूचर्स और CFD कीमतों पर अटकलें लगाने और ट्रेडिंग की लंबी रणनीतियाँ बनाने के लिए उचित होते हैं।