टाइम इन फ़ोर्स ऑर्डर क्या होता है, और इसका कब इस्तेमाल किया जाता है?
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ट्रेडिंग बाज़ारों से वाकिफ़ हर इंसान को सही टाइमिंग की अहमियत पता होगी। स्टेबल से स्टेबल ट्रेडिंग एसेट्स में भी कुछ अवधियों में काफ़ी भारी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, जिसके चलते ट्रेडिंग की समूची दुनिया समय के प्रति काफ़ी संवेदनशील मानी जाती है।
पुराने ज़माने में ट्रेडर मैन्युअल रूप से ऑर्डरों का आगाज़ कर उन्हें रद्द करने के लिए अपने दिमाग और संगठनात्मक कौशल का सहारा लेते थे, जिसके चलते कई असफल सौदे, स्लिपेज, और पोर्टफ़ोलियो लॉस होते थे।
टाइम-इन-फ़ोर्स ऑर्डर इस यथास्थिति में बदलाव लाए हैं, जिसके चलते ट्रेडर डिजिटल ट्रेडिंग टूल्स की शक्ति का इस्तेमाल कर सर्जिकल सटीकता के साथ सौदे एक्सीक्यूट कर सकते हैं। इस लेख में हम टाइम-इन-फ़ोर्स ऑर्डरों के साथ-साथ कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव और ट्रेडिंग की संपूर्ण कार्यक्षमता के बारे में चर्चा करेंगे।
प्रमुख बिंदु
- टाइम-इन-फ़ोर्स ऑर्डर बेहद कारगर स्वचालित टूल्स होते हैं, जिनके माध्यम से ट्रेडर अपने सौदों पर पूर्व-शर्तें निर्धारित कर सकते हैं। हर टाइम-इन-फ़ोर्स ऑर्डर को अपने आप ही एक्सीक्यूट और प्लेस किया जाता है।
- टाइम-इन-फ़ोर्स ऑर्डरों की बदौलत ट्रेडर इंसानी गलती की गुंजाइश को कम कर अपने ट्रेडिंग शेड्यूल के रोज़मर्रा के कामकाज को ऑटोमेट कर सकते हैं।
- टाइम-इन-फ़ोर्स ऑर्डर के चार प्रमुख उपप्रकार होते हैं: IOC, FOK, AON और GTC ऑर्डर।
- हर उपप्रकार किसी विशिष्ट बाज़ार और संदर्भ में ही कारगर होता है। इसलिए उनमें से हरेक के फ़ायदे-नुकसान के बारे में जान लेना ज़रूरी होता है।
टाइम-इन-फ़ोर्स के क्या मायने होते हैं?
टाइम-इन-फ़ोर्स का नाम डिजिटल ट्रेडिंग क्रांति के सबसे इनोवेटिव और अहम टूल्स में शुमार है। इन टाइम्ड ऑर्डरों को स्वतः ही एक्सीक्यूट किया जाता है, जिसके चलते देरी या स्लिपेज की कोई गुंजाइश नहीं होती। इनकी बदौलत ट्रेडर अलग-अलग तरह की पूर्व-शर्तें सेट कर सकते हैं, और अपनी मनचाही कीमत और वॉल्यूम व सौदे की अन्य जानकारी का चयन कर सकते हैं।
नतीजतन सौदों को सिर्फ़ सभी शर्तों के पूरा होने पर ही एक्सीक्यूट किया जाता है, और ट्रेडर सौदों के अनचाहे परिणामों के जोखिम को कारगर ढंग से कम कर देते हैं।
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कस्टमाइज़ेशन अवसरों और बुनियादी कार्यों के अलग-अलग स्तरों वाले कई प्रकार के टाइम-इन-फ़ोर्स ऑर्डर होते हैं। बाज़ार के सबसे जाने-माने विकल्पों में इमीडियेट या कैंसल ऑर्डर, फ़िल या किल ऑर्डर, गुड टिल कैंसल्ड ऑर्डर और ऑल या नन ऑर्डर शामिल हैं। इनमें से हर उपप्रकार के अपने अनूठे फ़ायदे तो होते हैं, लेकिन उनके कुछ नुकसान भी होते हैं।
ट्रेडिंग सौदों पर ज़्यादा नियंत्रण हासिल करने का अवसर उन सभी में साझा होता है। इनकी बदौलत अब ट्रेडरों को पल-पल बदलते बाज़ार के हालातों और अस्थिर एसेट वॉल्यूम्स के भरोसे नहीं रहना पड़ता।
आखिरकार एक अच्छी ट्रेडिंग रणनीति सिर्फ़ वेरिएबल्स के अपरिवर्तित रहने पर ही काम कर पाती है। टाइम-इन-फ़ोर्स ऑर्डरों को ट्रेडिंग एक्सीक्यूशनों में सटीकता और प्रत्याशितता हासिल करने के इरादे से ही बनाया गया था।
टाइम-इन-फ़ोर्स ऑर्डरों के सबसे जाने-माने वेरिएशन
जैसा कि ऊपर उल्लिखित है, अपनी उच्च स्तरीय उपयोगिता और लचीलेपन की बदौलत IOC, FOK, ऑल या नन और गुड टिल कैंसल्ड ऑर्डर बाज़ार के सबसे लोकप्रिय विकल्प हैं। इन सभी टाइम-इन-फ़ोर्स वेरिएशनों के बारे में चर्चा कर आइए इनके अनूठे फ़ायदों के बारे में जानते हैं।
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इमीडियेट या कैंसल (IOC) ऑर्डर
सफलता और विविधतता की अपनी अच्छी-खासी संभावना के कारण IOC ऑर्डर ट्रेडरों की पहली पसंद होते हैं। IOC ऑर्डरों की दो प्रमुख पूर्व-शर्तें होती हैं – एसेट प्राइस और वॉल्यूम।
लेकिन ये शर्तें IOC की नरम सीमाएँ मात्र होती हैं। खासकर वॉल्यूम फ़िल करने कि कोई ज़रूरत नहीं होती, और प्राइस वाली शर्त IOC उपप्रकारों पर निर्भर करती है। मान लीजिए कोई ट्रेडर किसी लिमिट ऑर्डर सबटाइप का चयन करता है।
ऐसे में, प्राइस वाली शर्त एक सख्त सीमा बन जाती है, यानी कि या तो ट्रेडर द्वारा चयनित विशिष्ट कीमत मैच होगी या फिर सौदा पूरी तरह से रद्द हो जाएगा।
मार्केट ऑर्डर टाइम इन फ़ोर्स के मामले में कीमत थोड़ी ऊपर-नीचे हो सकती है, लेकिन अगर संबंधित एसेट की माँग मज़बूत है, तो सौदा फिर भी पूरा हो ही जाएगा। ज़ाहिर है कि लिमिट ऑर्डर ज़्यादा सटीक होते हैं, लेकिन मार्केट ऑर्डरों के एक्सीक्यूट होने की संभावना ज़्यादा होती है।
लेकिन एसेट वॉल्यूम को आंशिक रूप से पूरा किया जा सकता है, और IOC ऑर्डर फिर भी सौदे को एक्सीक्यूट कर देगा। इस प्रकार, समूचे सौदे से हाथ धो बैठने की जगह ट्रेडर कम से कम अपनी मनचाही रणनीति के एक हिस्से को तो पूरा कर पाते हैं।
फ़िल या किल ऑर्डर
दूसरी तरफ़, IOC ऑर्डरों की तुलना में FOK ऑर्डर कहीं ज़्यादा सख्त होते हैं। इस मामले में प्राइस और वॉल्यूम वाली शर्तें, दोनों ही सख्त सीमाएँ होती हैं, और या तो समूचे ऑर्डर से दोनों वेरिएबल मैच हो जाते हैं या फिर वह फ़ौरन रद्द हो जाता है।
ज़ाहिर है कि FOK ऑर्डरों के पूरे होने कि कम संभावना होती है क्योंकि समूची वॉल्यूम वाली उनकी अतिरिक्त आवश्यकता जो होती है। लेकिन उनकी उपयोगिता को विदेशी मुद्रा जैसी उच्च लिक्विडिटी और कम मार्जिन वाले सेक्टरों के दरमियाँ आँका जाता है, जबकि IOC ऑर्डरों को शेयर बाज़ार और उससे मिलते-जुलते सेक्टरों में काफ़ी सराहा जाता है।
अब क्योंकि FOK ऑर्डर इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि सौदा या तो फ़ौरन फ़िल हो जाए या फिर रद्द हो जाए, ट्रेडरों के लिए एक-साथ अपने निवेशों की बड़ी-बड़ी मात्रा को नियंत्रित कर पाना कहीं आसान हो जाता है। FOK की सेटिंग करके स्वतः ही गैर-फ़ायदेमंद सौदों को रद्द किया जा सकता है ताकि निवेशकों को इंसानी गलती को लेकर माथापच्ची न करनी पड़े।
ऑल या नन ऑर्डर
FOK ऑर्डर से लगभग मिलता-जुलता ऑल-या-नन ऑर्डर एक अहम प्रकार से उससे भिन्न भी होता है। फ़ौरन एक्सीक्यूट हो जाने की भारी-भरकम ज़रूरत के बजाय, AON ऑर्डर ट्रेडिंग डे के दौरान सक्रिय रहकर कीमत और मात्रा, दोनों ही के सटीक मैच की तलाश करते रहते हैं। इस प्रकार, सौदों के सफल होकर पूरा होने की अधिक संभावना होती है। लेकिन समझौते के एक्सीक्यूट होने में कहीं ज़्यादा वक्त भी लग सकता है, बशर्ते वह एक्सीक्यूट हो भी।
AON ऑर्डर खुली पेशकशों में बाज़ार की छानबीन कर यह पता लगाते हैं कि उन्हें कोई मैच मिला या नहीं। कुछ खास मामलों में इस प्रक्रिया में कुछ दिन या यहाँ तक कि कुछ हफ़्तों का समय भी लग सकता है। हालांकि कीमत और वॉल्यूम को प्राथमिकता देने वाले लोगों के लिए यह तरीका शानदार साबित होता है, तेज़तर्रार सौदों के लिए यह नुकसानदेह भी हो सकता है। कुछ मामलों में ट्रेडरों को एक तय समय-सीमा में किसी अनुकूल सौदे की दरकार होती है, और ऐसे हालातों में AON ऑर्डर सटीक मैच साबित नहीं होते हैं।
गुड टिल कैंसल्ड ऑर्डर
आखिरकार सबसे बेसिक तरह के टाइम-इन-फ़ोर्स ऑर्डर गुड-टिल-कैंसल्ड (GTC) ऑर्डर होते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि GTC ऑर्डर लोकप्रिय नहीं होते या फिर उनका कोई मूल्य नहीं होता। बल्कि GTC ऑर्डर तो अलग-अलग ट्रेडिंग बाज़ारों में प्रचलित हैं। GTC के काम करने का तरीका भी IOC ऑर्डरों जैसा ही होता है, लेकिन वे तब तक खुले रहते हैं, जब तक कि ग्राहक सौदे को रद्द करने का फ़ैसला न ले ले।
ट्रेडर की पसंद-नापसंद के अनुसार GTC ऑर्डर आमतौर पर 30 से 90 दिन तक जा सकते हैं। IOC ऑर्डरों की तात्कालिक एक्सीक्यूशन से यह अवधि कहीं ज़्यादा बड़ी होती है और यह लंबी रणनीति रोडमैप वाले निवेशकों के लिए सबसे बेहतरीन साबित होती है।
निवेशकों के पोर्टफ़ोलियो के लिए अपने संभावित जोखिमों के चलते GTC ऑर्डरों की अब NYSE में अनुमति नहीं दी जाती है। इसकी स्वचालित एक्सीक्यूशन के लिए अस्थिरता में आने वाले अस्थायी बदलाव ज़िम्मेदार हो सकते हैं, जिनके चलते निवेशकों को भारी नुकसान उठाने पड़ सकते हैं।
हर वेरिएशन के इस्तेमाल का सबसे बेहतरीन समय क्या होता है?
उपर्युक्त चारों टाइम-इन-फ़ोर्स वेरिएशनों को अपने-अपने अनूठे मामलों में इस्तेमाल किया जाता है व वे हर ट्रेडर की पसंद-नापसंद पर निर्भर करते हैं। लेकिन उन सभी के लिए विस्तृत ऐप्लीकेशन और पसंदीदा बाज़ार उपलब्ध हैं।
उदाहरण के तौर पर IOC ऑर्डरों का अक्सर शेयर बाज़ार और क्रिप्टो सेक्टर में इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि ये दोनों ही बाज़ार कीमत के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। भले ही IOC ऑर्डर समूची वॉल्यूम डिलीवर न कर पाएँ, लेकिन उनके सटीक प्राइस मैच और फ़र्राटेदार एक्सीक्यूशन स्टॉक और क्रिप्टो के काफ़ी अनुकूल होते हैं।
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दूसरी तरफ़, FOK विदेशी मुद्रा जैसी हाई-लिक्विडिटी परिस्थितियों में लोकप्रिय होते हैं क्योंकि इस सेक्टर की वॉल्यूम अहम होती है। कुछ मुद्राओं के साथ ट्रेड करना सिर्फ़ तभी सही होता है, जब वॉल्यूम भी उतनी ही ज़्यादा हो। नहीं तो मुनाफ़े के छोटे-मोटे मार्जिन में कोई खास मज़ा नहीं आता।
AON और GTC ऑर्डर FOK और IOC ऑर्डरों के स्वाभाविक विस्तार और संशोधन होते हैं। इन दोनों ही वेरिएशनों के तहत ट्रेडर अपनी मनचाही रणनीति का चयन कर पाते हैं। AON के मामले में पर्याप्त वॉल्यूम के साथ अपने सौदे एक्सीक्यूट करने का ट्रेडर खुद को बेहतर मौका देते हैं, जो विदेशी मुद्रा बाज़ार में एक कमाल की रणनीति साबित हो सकती है। IOC ऑर्डरों के लिए GTC भी बढ़िया विकल्प होते हैं, क्योंकि उनकी बदौलत ट्रेडर अपना समय लेकर खुले ऑर्डरों पर किसी सीमा के बगैर सौदे के एक्सीक्यूट होने के अपनी संभावनाओं में बढ़ोतरी ला सकते हैं।
अंतिम विचार
इंडस्ट्री कोई भी हो, टाइम-इन-फ़ोर्स ऑर्डर आधुनिक ट्रेडिंग के अहम मैकेनिज़्म होते हैं। शेयर बाज़ार, क्रिप्टो, विदेशी मुद्रा और अन्य प्रमुख ट्रेडिंग सेक्टरों में उनके जितना कारगर और कोई नहीं होता।
लेकिन उनका सही इस्तेमाल विशिष्ट परिस्थितियों और ट्रेडिंग रणनीतियों पर निर्भर करता है। सही ढंग से और ट्रेडिंग की उचित स्थिति में इस्तेमाल किए जाने पर हर उपप्रकार मददगार साबित होती है। इसलिए किसी टाइम-इन-फ़ोर्स वेरिएशन का चयन करने से पहले अपने विकल्पों को अच्छे से देख-परख लें, क्योंकि आपकी पोर्टफ़ोलियो रिटर्न को वह बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है।